बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, कुछ दोषियों को मिल जाते हैं विशेषाधिकार

नई दिल्ली
हर दोषी एक जैसा नहीं होता है और कुछ लोग तो दूसरों के मुकाबले विशेषाधिकार जैसी स्थिति में होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिलकिस बानो केस के दोषियों की रिहाई को लेकर यह बात कही। अदालत में उम्रकैद की सजा पाए 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इन लोगों पर बिलकिस बानो से गैंगरेप करने और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या करने का आरोप सिद्ध हुआ था। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की बेंच में इस बात को लेकर सुनवाई चल रही है कि गुजरात सरकार के पास दोषियों की समय पूर्व रिहाई का अधिकार है या नहीं।

बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि बिलकिस बानो केस के दोषी उन लोगों के साथ अपनी तुलना नहीं कर सकते, जो अपनी सजा के दौरान कभी पेरोल पर जेल से बाहर ही नहीं गए। एक दोषी का पक्ष रखते हुए सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि इन लोगों में बहुत सुधार आया था। जेल के अंदर इनका व्यवहार काफी अच्छा रहा। इसके अलावा इनके परिवार के लोग भी लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। ऐसे में सुधार का मौका देने के सिद्धांत के तहत उनकी रिहाई गलत नहीं थी।

वकील सिद्धांत लूथरा ने कहा, 'जेल के अंदर पूरी जिंदगी गुजारना कठिन होता है। ये लोग बीते 15 सालों से जेल में बंद थे। इनके परिवारों के लोग बाहर इंतजार कर रहे थे। इन लोगों का इंतजार था कि जेल से बाहर आएं और फिर सुधरे हुए इंसान के तौर पर जिंदगी बिताएं। सुधार ही तो न्याय की अहम कड़ी है।' हालांकि इससे अदालत संतुष्ट नहीं दिखी। बेंच ने इस तर्क के जवाब में कहा, 'लेकिन इस मामले में ये लोग कई बार जेल से बाहर आए। कुछ कैदी ऐसे होता हैं, जिन्हें दूसरों के मुकाबले ज्यादा अधिकार मिलते हैं। यह अहम बिंदु है, जिस पर हम बात करना चाहते हैं।'

अदालत में पेश रिकॉर्ड्स के मुताबिक इन 11 अपराधियों में से कई ऐसे भी थे, जो अपनी सजा के दौरान करीब 1,100 दिन तक जेल से पेरोल पर बाहर रहे। बेंच ने कहा कि कोई भी समय पूर्व रिहाई की पॉलिसी को लेकर बात नहीं कर रहा है। सवाल इस बात पर है कि कैसे इस नियम का इस्तेमाल किया जा रहा है और किन लोगों के लिए हो रहा है। इस पर वकील ने कहा कि ये लोग 15 साल तक जेल में बंद थे। ऐसे में डेढ़ दशक बाद यदि ये लोग सुधार के लिए बाहर निकलते हैं तो इसका स्वागत होना चाहिए।

 

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