नए विधेयक में ‘राजद्रोह’ का नाम बदला, दायरा बढ़ा, पहले से ज्यादा कड़ी सजा का प्रावधान

नई दिल्ली
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में अंग्रेजों के जमाने के तीन कानूनों को खत्म करने के लिए विधेयक पेश किया। उन्होंने कहा कि नया विधेयक आईपीसी की के तहत राजद्रोह की धारा को पूरी तरह खत्म कर देगा। इस विधेयक की धारा 150 में भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वालों के लिए सजा का प्रावधान किया जाएगा। दरअसल अब इसे देशद्रोह कानून के तौर पर जाना जाएगा। वहीं सजा का प्रावधान पहले से भी कड़ा कर दिया गया है।

गृह मंत्री ने शुक्रवार को कहा कि नए क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में आईपीसी की धारा 124 A के तहत आने वाले राजद्रोह को पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। इसके अलावा नए विधेयक को संसदीय पैनल की स्क्रूटनी के लिए भेजा जाएगा। अब इसे भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023 के तहत अगर देशद्रोह की बात करें तो बस इसका नाम बदल दिया गया है। वहीं जहां पहले 124 ए में 'भारत की सरकार' का उल्लेख था उसे बदलकर 'भारत की एकता और अखंडता' कर दिया गया है।

इस धारा 150 में भी अगर कोई अलगाववादी गतिविधियां करता है या फिर उनको बढ़ावा देता है तो उसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। इस सेक्शन 150 में कहा गया है, 'कोई भी व्यक्ति शब्दों से, लिखिता या मौखिक रूप से, सांकेतिक रूपसे या फिर दृश्य तरीके से इलेक्ट्रॉनिक या फिर वित्तीय ाध्यमों से अलगाववाद, सशस्त्र विद्रोह को बढ़ावा देता है या फिर भारत की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाली गतिविधियों या भावनाओं को बढ़ावा देता है तो ऐसे कृत्य के लिए उसे उम्र कैद या फिर सात साल की सजा और जुर्माना हो सकता है।'

क्या कहता  था आईपीसी का सेक्शन 124A
राजद्रोह की धारा में भी इससे इतर कोई बात नहीं कही गई थी। बस सजा का प्रावधान जुर्माना या फिर तीन साल की कैद थी। इसें लिखा गया था, कोई भी व्यक्ति शब्दों से, लिखिता या मौखिक रूप से, सांकेतिक रूप से अलगाववाद, सशस्त्र विद्रोह को बढ़ावा देता है या फिर भारत की सरकार को खतरे में डालने वाली गतिविधियों या भावनाओं को बढ़ावा देता है तो ऐसे कृत्य के लिए उसे तीन साल की कैद या फिर कैद के साथ जुर्माना हो सकता है।'नए विधेयक में इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन और वित्तीय माध्यमों को भी जोड़ दिया गया है। इसके अलावा सजा का भी प्रावधान बढ़ा दिया गया है।

जानकारों कहना है कि नए विधेयक में केवल भारत की एकता और अखंडता को जोड़ दिया गया है बाकी पहले जैसी ही बातें हैं। इसमें भाषण, किताब या लेख, ड्रामा या ऐक्ट सब 124 ए की ही तरह शामिल है। वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने  कहा कि जब इस तरह के मामलों से निपटने के लिए दूसरे प्रावधान हैं तो देशद्रोह कानून की क्या कोई जरूरत है? वरिष्ठ वकील कोलिन गोंसालविस ने कहा कि केंद्र सरकार यह कहकर कि राजद्रोह को खत्म कर दिया गया है केवल जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश कर रही है।

उन्होने कहा, वही पुराना राजद्रोह कानून नए शब्दों में पेश कर दियागया है । यह तो पहले से भी ज्यादा बुरा है। पहले तो लोगों को जुर्माना भरने के बाद भी छोड़ा जा सकता था लेकिन अब कैद को अनिवार्य कर दिया गया है। वह भी कम से कम 7 साल और नहीं तो उम्रकैद भी हो सकती है।

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button