विशाल घरेलू डिमांड के बल पर देशी कंपनियां बनेगी ग्लोबल

नई दिल्ली

भारतीय जनसंख्या  में मिडिल क्लास  सबसे तेजी से बढ़ रहा है। साल 1995 से 2021 के बीच इस क्लास में 6.3 फीसदी सालाना की दर से बढ़ोतरी हुई है। आज भारत की कुल जनसंख्या में से 31 फीसदी मिडिल क्लास है। साल 2031 तक इसके 38 फीसदी तक जाने का अनुमान है। वहीं, साल 2047 तक भारतीय जनसंख्या में मिडिल क्लास आबादी 60 फीसदी तक पहुंच जाएगी। जब भारत की आजादी को 100 साल हो जाएंगे, तब देश में 1 अरब से अधिक लोग मिडिल क्लास में होंगे। ये आंकडें PRICE ICE 360 डिग्री सर्वे से लिये गए हैं।

अब कल्पना कीजिए कि विदेशी मल्टीनेशनल कंपनियां, विशेषरूप से FMCG सेक्टर की, जब भारत आएंगी तो उन्हें कितना बड़ा मार्केट मिलेगा। वे सिर्फ एक बड़े मार्केट के लिए ही नहीं, बल्कि बड़ा मुनाफा कमाने के लिए भारत आएंगी। आने वाले समय में इतना बड़ा मिडिल क्लास निश्चित रूप से भारत की परचेजिंग पावर को काफी अधिक बढ़ा देगा।

कल्पना करें कि देशी कंपनियां विशाल घेरलू डिमांड के बल पर आसानी से ग्लोबल कंपनियां बन जाएंगी। मिडिल क्लास के बढ़ने के साथ ही डिस्पोजेबल इनकम भी बढ़ रही है, जो भारत को एक कंजंप्शन पावरहाउस बनाएगी।

कल्पना कीजिए कि भारत की आधी से अधिक आबादी मिडिल क्लास की है। मिडिल क्लास, जिसमें क्वालिटी एजुकेशन पाने की तरफ झुकाव होता है। मिडिल क्लास, जो धीरे-धीरे अपना जीवन स्तर अच्छा करने करने के लिए आगे बढ़ता है। इतनी बड़ी संख्या में कॉलेज एजुकेटेड प्रोफेशनल्स निश्चित रूप से बड़े पैमाने पर इनोवेशन और एंटरप्राइज को बढ़ावा देंगे।

यह देशभर में एक दर्जन बेंगलुरू तैयार होने की तरह होगा। जिसके हर मोहल्ले में एक यूनिकॉर्न होगी। एक दर्जन हैदराबाद भी होंगे, जहां भारतीय तकनीकी विशेषज्ञ अपना दिमाग दौड़ा रहे होंगे।

भारत की आर्थिक क्षमता को प्रभावित करने वाले जाति और धर्म के झगड़े न्यूनतम हो जाएंगे। इतना बड़ा मिडिल क्लास राजनीति को भी प्रभावित करेगा। आज की चुनावी राजनीति तब शायद हेल्थ, एजुकेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर और जॉब्स जैसे मिडिल क्लास के मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमेगी। जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ेगा, जातिगत भेद मिटता जाएगा। एक समतावादी भारत का निर्माण होगा।

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