संसद में अमित शाह का AAP पर तंज, विवाद तो बंगले पर खर्च छिपाने का है

नईदिल्ली

दिल्ली सेवा बिल को लेकर लोकसभा में बहस शुरू हो गई है। होम मिनिस्टर अमित शाह ने गुरुवार को इस पर विस्तार से बात रखी और आम आदमी पार्टी सरकार पर बिना नाम लिए हमला बोला। अमित शाह ने कहा दिल्ली में विधानसभा की शुरुआत 1993 में की गई थी। तब से कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारें रहीं और केंद्र में अलग सरकार थीं। फिर भी दोनों के बीच कोई विवाद नहीं हुआ। असल में विवाद तो 2015 से शुरू हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि विवाद अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकारों को लेकर नहीं है बल्कि विजिलेंस को हाथ में लेकर बंगले पर किए गए खर्च को छिपाने पर है।

अमित शाह ने कहा कि दिल्ली न तो पूर्ण राज्य है और न ही पूरी तरह संघ शासित क्षेत्र है। इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 239 A में किया गया है। उन्होंने कहा कि इस अनुच्छेद में प्रावधान है कि केंद्र सरकार इसके लिए कोई भी कानून बना सकती है और उसे पूर्ण अधिकार प्राप्त है। अमित शाह ने कहा कि यह कहा गया कि कुछ लोगों ने सदन में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बात कही। उन लोगों ने कहा कि यह विधेयक शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ है। मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि यह उच्चतम न्यायालय के खिलाफ नहीं हूं।

उन्होंने कहा कि अदालत ने स्पष्ट तौर पर कहा कि संसद को अनुच्छेद 239A के तहत किसी भी मसले पर दिल्ली को लेकर कानून बनाने का अधिकार है। अमित शाह ने इस दौरान दिल्ली के गठन का इतिहास बताते हुए कहा कि इसे 1911 में अंग्रेजों ने महरौली और दिल्ली तहसीलों को मिलाकर गठित किया था। इसे पंजाब से अलग करके बनाया गया था। पट्टाभि सीतारमैय्या ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की थी। लेकिन पंडित नेहरू, सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद और आंबेडकर जी ने इसका विरोध किया था।

आंबेडकर ने कहा था- दिल्ली में पुलिस स्थानीय सरकार को नहीं दे सकते

अमित शाह ने कहा कि नेहरू ने अपने भाषण में कहा था कि सीतारमैय्या समिति की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा था कि दिल्ली में तीन चौथाई संपत्ति केंद्र सरकार के अधीन है। ऐसे में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। आंबेडकर ने भी कहा था कि भारत की राजधानी में किसी भी स्थानीय प्रशासन को मुक्त अधिकार नहीं दिए जा सकते। गृह मंत्री ने कहा दिल्ली में विधानसभा की शुरुआत 1993 में की गई थी। तब से कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारें रहीं और केंद्र में अलग सरकार थीं। फिर भी दोनों के बीच कोई विवाद नहीं हुआ। असल में विवाद तो 2015 से शुरू हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि विवाद अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकारों को लेकर नहीं है बल्कि विजिलेंस को हाथ में लेकर बंगले पर किए गए खर्च को छिपाने पर है।

 

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