गोधरा कांड के बाद हुए दंगे के 4 मामलों में 35 आरोपी बरी, नहीं मिला कोई सबूत

 नई दिल्ली

गुजरात की एक निचली अदालत ने 2002 के गोधरा दंगों के बाद हुए दंगे से जुड़े चार मामलों में 35 लोगों को बरी किया। कोर्ट के मुताबिक आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे, वो कुछ झूठी-धर्मनिरपेक्ष मीडिया और राजनेताओं के प्रोपगेंडा का शिकार हुए। आरोपियों में कई डॉक्टर, प्रोफेसर, शिक्षक और व्यवसायी शामिल हैं।

इस मामले की सुनवाई पंचमहल जिले के हलोल कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हर्ष बालकृष्ण त्रिवेदी की अदालत में हो रही थी। 20 साल पहले जब मुकदमा शुरू हुआ था, तो 52 लोगों को आरोपी बनाया गया था। उसमें से 17 की अलग-अलग कारणों से मौत हो गई। ऐसे में अब 35 ही आरोपी बचे थे, जिनको भी बरी कर दिया गया है। कोर्ट ने ये भी कहा है कि गोधरा दंगे के बाद हुए दंगे अपने आप हुए थे। वो योजनाबद्ध नहीं थे। इसके अलावा आरोपियों के खिलाफ जो कहानी बताई गई, उसको सिद्ध करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। कोर्ट के मुताबिक साबरमती ट्रेन में आगजनी की घटना के बाद गुजराती लोग दुखी थे। कुछ नकली धर्मनिरपेक्ष मीडिया और नेताओं ने उनके जले पर नमक छिड़का और उन्हें उसकाने की कोशिश की।

ऐसे समझें मामला
डेलोल गांव में कलोल बस स्टाप और डेरोल रेलवे स्टेशन क्षेत्र में 28 फरवरी 2002 को हिंसा हुई। इस मामले में 52 लोगों को आरोपी बनाया गया। उन पर आरोप लगा कि उन्होंने घातक हथियारों से तीन लोगों की हत्या की। इसके बाद शव और सारे सबूतों को जला दिया। इस मामले में पुलिस ने कोर्ट को तीन लापता व्यक्तियों के बारे में बताया। वो दंगों के बाद राहत शिविरों में रह रहे थे। सुनवाई के दौरान कुल 130 गवाहों के बयान लिए गए, लेकिन कोई ठोस सबूत आरोपियों के खिलाफ नहीं मिला। ऐसे में कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। वैसे तो ये फैसला 12 जून को आ गया था, लेकिन फैसले की कॉपी अब सामने आई है।

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