“सोशल मीडिया बैन से सियासी भूचाल तक: नेपाल को क्या मिला, क्या खोया

“Gen Z के आंदोलन ने सत्ता बदली, लेकिन गुमराही, हिंसा और विश्वास की दरार आगे भी बनी”

नेपाल में हाल-ही में हुई घटनाएँ सिर्फ एक राजनीतिक टकराव की कहानी नहीं हैं, बल्कि उन अपेक्षाओं, नाराजियों और घटते भरोसों की भी कहानी है, जिनका बोझ आम जनता और विशेषकर युवा पीढ़ी पर पड़ा है।

घटना का सार

नेपाल सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाया, सरकारी आदेशों के अनुरूप पंजीकरण न करने पर।इसे मनोरंजन नहीं, बल्कि जन-संवाद और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रतिबंध माना गया। युवा लोगों में भारी असंतोष उभरा।आंदोलन बढ़ा, सड़कों पर उतरने लगे लोग, प्रदर्शन हिंसक हो गये। सरकारी इमारतें जलीं, संसद पर धावा हुआ।कुल मिलाकर कथित मौतों की संख्या लगभग 72 हुई, घायल लोगों की संख्या हजारों में।इस के बाद प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने इस्तीफा दिया। संसद भंग हुई। सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया – वे देश की पहली महिला पीएम।

नेपाल को क्या मिला

राजनीतिक बदलाव / सरकार में परिवर्तन
ओली की सत्ताधारी सरकार गिरी और एक नए नेतृत्व ने कार्यभार संभाला। सुशीला कार्की जैसे स्वच्छ छवि वाले व्यक्ति को मौका मिला।मीडिया और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पुनर्विचार सोशल मीडिया बैन को हटाया गया ।

युवा शक्ति का संदेश साफ
Gen Z की अपेक्षाएँ — रोजगार, पारदर्शिता, भ्रष्टाचार कम होना — अब सार्वजनिक चर्चा का हिस्सा बन गई हैं। नेतृत्व को दिखा कि जनता की उम्मीदों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।अंतरिम समाधान और वैधानिक तंत्र की बहाली।

नेपाल को क्या खोना पड़ा

ज़िंदगी और मानव जीवन की कीमत
70 से अधिक लोगों की मौतें, हजारों घायल — यह नुकसान सिर्फ आँकड़ों में नहीं, बल्कि उन परिवारों की ज़िंदगी में गहरी चोट है।

भरोसा टूटा
सरकार, पुलिस, सत्ताधारियों पर भरोसा घटा।

आर्थिक नुक़सान
हफ्तों की अशांति से व्यापार रुका, सीमा पार का व्यापार प्रभावित हुआ। निवेश, पर्यटकों की उम्मीदें कम हुईं। रोजमर्रा की ज़रूरतों की आपूर्ति बाधित हुई।

संपादकीय

नेपाल ने जो “खोया” वह भारी था — मृत्यु, जख्म, सामाजिक तनाव, आर्थिक अस्थिरता और विश्वास की कमी। लेकिन उसने जो “पाया” भी है, वह किसी छोटे बदलाव से कम नहीं: युवा की आवाज़, राजनीतिक जवाबदेही की मांग, सरकार में परिवर्तन और चेतना की जागृति।

नेपाल की घटना से अन्य देशों की सरकारों को भी चाहिए कि न्यायालय, मीडिया, अभिव्यक्ति की आज़ादी को संविधान और कानूनों के अनुरूप मजबूत करे।युवाओं की शासन-प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित हो — सिर्फ चुनाव में नहीं, नीति निर्माण की बैठकों में भी।पारदर्शिता, भ्रष्टाचार-उन्मूलन, और राजनीतिक दलों की जवाबदेही सुनिश्चित हो।आर्थिक अवसरों पर ध्यान दें — बेरोज़गारी कम हो, युवा शिक्षा-विकास के साथ कौशल-प्रशिक्षण को बढ़ावा मिले।

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