सोशल मीडिया की बाढ़ में समाचार पत्रों की प्रासंगिकता

वर्तमान सूचना का युग है। सोशल मीडिया ने समाचारों की पहुँच और गति को इतना तेज़ बना दिया है कि हर व्यक्ति रिपोर्टर-सा दिखने लगा है। किंतु प्रश्न यह है कि क्या सोशल मीडिया की इस बाढ़ में समाचार पत्र अप्रासंगिक हो गए हैं?
संपादक के रूप में मेरा मानना है—बिलकुल नहीं। बल्कि समाचार पत्र की आवश्यकता आज पहले से कहीं अधिक बढ़ी है।
सोशल मीडिया तात्कालिक है, परंतु असत्य और अप्रमाणिक सूचनाओं का सबसे बड़ा केंद्र भी वही है। प्रशासन के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो जाती है, क्योंकि अफवाहें कानून-व्यवस्था तक को प्रभावित कर देती हैं। इसके विपरीत समाचार पत्र तथ्यों की पुष्टि कर, जिम्मेदारी और संतुलन के साथ सूचना प्रस्तुत करते हैं।समाचार पत्रों की भाषा संयमित होती है। वे घटनाओं का गहन विश्लेषण कर पाठकों को संदर्भ सहित जानकारी देते हैं। यही कारण है कि शासन-प्रशासन भी समाचार पत्रों की कतरनों और रिपोर्टों को दस्तावेज़ी प्रमाण के रूप में संजोता है। प्रशासनिक निर्णयों में समाचार पत्रों को अब भी आधारभूत और विश्वसनीय स्रोत माना जाता है।
समाचार पत्र न केवल घटनाओं की सूचना देते हैं, बल्कि उनका गहन विश्लेषण प्रस्तुत कर समाज को सही दृष्टि भी प्रदान करते हैं। योजनाओं का प्रभाव हो या जनता की अपेक्षाएँ, समाचार पत्र उनका दस्तावेज़ीकरण करते हैं। यही स्थायित्व भविष्य के लिए संदर्भ सामग्री बनता है, जबकि सोशल मीडिया की सूचनाएँ क्षणिक होकर लुप्त हो जाती हैं।
ग्रामीण भारत में समाचार पत्र आज भी जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। वहाँ वे प्रशासन और नागरिकों के बीच सेतु का कार्य करते हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों मे सोशल मीडिया की पहुँच या तो सीमित है या फिर मनोरंजन तक सिमटी हुई है।यह तथ्य स्वयं प्रमाण है कि समाचार पत्र न केवल सूचना का माध्यम हैं, बल्कि विश्वास और जिम्मेदारी का प्रतीक भी हैं।
इसलिए मेरा स्पष्ट मत है कि सोशल मीडिया के इस दौर में समाचार पत्रों की आवश्यकता और उपयोगिता कहीं अधिक बढ़ गई है। वे लोकतंत्र की आत्मा और प्रशासन की आँख दोनों हैं। समाज और शासन के लिए दीर्घकालिक दृष्टि से समाचार पत्र ही वास्तविक मार्गदर्शक बने हुए हैं।
रामानुज तिवारी
सचिव
न्यूज पेपर ऑनर एंड एडिटर एसोसिएशन म.प्र.