श्रीकाल भैरवाष्टमी 16 नवंबर को

भैरव आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है।

 

श्रीकाल भैरवाष्टमी इस वर्ष 16 नवंबर बुधवार को है मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन भगवान शिव,भैरव रूप में प्रकट हुए थे,भैरव अष्टमी तंत्र साधना के लिए अति उत्तम मानी जाती है ।भैरव भगवान महादेव का अत्यंत ही रौद्र, भयाक्रांत, वीभत्स,विकराल प्रचंड स्वरूप है।
भैरवजी को काशी का कोतवाल भी माना जाता है। श्रीकालभैरव जी के पूजन से अनिष्ट का निवारण होता है। उनकी प्रिय वस्तुओं में काले तिल, उड़द,नींबू,नारियल,अकौआ के पुष्प,कड़वा तेल, सुगंधित धूप, जलेबी,पुए, कड़वे तेल से बने पकवान दान किए जा सकते हैं। भैरव अष्‍टमी के दिन भैरवजी के वाहन श्वान (कुत्ते) को भोजन और गुड़ खिलाने का विशेष महत्व है। दसों दिशाओं के नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति मिलती है तथा संतान की प्राप्ति होती है

श्रीभैरव जी के पूजन से मनोवांछित फल देने वाली होती है, यह दिन साधक भैरव जी की पूजा अर्चना करके तंत्र-मंत्र की विद्याओं को पाने में समर्थ होता है मान्यता अनुसार इस दिन कालभैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न समाप्त हो जाते हैं, भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहता है।
श्रीकालभैरव उपासना क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करती है,भैरव देव जी के राजस, तामस एवं सात्विक तीनों प्रकार के साधना तंत्र प्राप्त होते हैं, भैरव साधना स्तंभन, वशीकरण, उच्चाटन और सम्मोहन जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए कि जाती है, इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं,इन्हीं से भय का नाश होता है और इन्हीं में त्रिशक्ति समाहित हैं, हिंदू देवताओं में भैरव जी का बहुत ही महत्व है यह दिशाओं के रक्षक और काशी के संरक्षक कहे जाते हैं,कहते हैं कि भगवान शिव से ही भैरव जी की उत्पत्ति हुई,यह कई रुपों में विराजमान हैं बटुक भैरव और काल भैरव यही हैं, इन्हें रुद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाली भैरव,भीषण भैरव,असितांग भैरव,चंड भैरव,रुरु भैरव संहार भैरव और भैरवनाथ भी कहा जाता है, नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व रहा है,भैरव आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट,कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है, व्यक्ति में साहस का संचार होता है।

कैसे हुई कालभैरव की उत्पत्ति

धर्मग्रंथों में श्रीकालभैरव उत्पत्ति की बड़ी ही रोचक कथा है। एक बार सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी और भगवान विष्‍णु से पूछा कि संसार में सबसे ज्‍यादा श्रेष्‍ठ कौन है। तब स्‍वयं को श्रेष्‍ठ साबित करने के लिए ब्रह्मा जी और विष्‍णु जी के बीच विवाद हो गया,इसके बाद सभी देवताओं ने वेदशास्‍त्रों से पूछा कि संसार में सबसे श्रेष्‍ठ कौन है। तो उन्‍हें उत्तर मिला कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्‍य और वर्तमान समाया हुआ है अनादि अनंत और अविनाशी तो भगवान रुद्र ही हैं,वेदशास्‍त्रों का यह उत्तर सुनकर ब्रह्मा जी अपने पांचवे मुख से भगवान शिव के बारे में अपशब्‍द कहने लगे। ये सब सुनकर वेद दुखी हो गए। उस समय एक दिव्‍यज्‍योति के रूप में भगवान रुद्र प्रकट हुए,इसे देखकर ब्रह्मा जी ने कहा हे रुद्र तुम मेरे मुख से ही पैदा हुए हो, अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्‍हारा नाम रुद्र रखा है। तुम मेरी सेवा में आ जाओ,इस बात पर भगवान शिव को क्रोध आ गया और उन्‍होंने अपनी शक्‍ति से भैरव को उत्‍पन्‍न कर कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। उस दिव्‍य शक्‍ति भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमान जनक शब्‍द कहने वाले ब्रहृमा जी के पांचवे मुख को ही काट दिया,इसके बाद काल भैरव ब्रह्म हत्‍या के पाप से मुक्‍ति पाने के लिए शिव जी का आदेश पर काशी आए। भगवान रुद्र ने इन्‍हें काशी का कोतवाल नियुक्‍त किया। आज भी काशी में काल भैरव को कोतवाल के रूप में पूजा जाता है। काल भैरव जी के दर्शन किए बिना विश्‍वनाथ के दर्शन करना अधूरा माना जाता है।

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