भारत-चीन व्यापार समझौते पर कड़ा विरोधनेपाल संसद में बवाल: “लिपुलेख पर सौदा मंजूर नहीं”
लिपुलेख दर्रे के महत्व को समझिए

Edited by – Ramanuj Tiwari
काठमांडू/नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रे से व्यापार फिर से शुरू करने के समझौते ने नेपाल की राजनीति में हलचल मचा दी है। नेपाल की संसद में इस मुद्दे पर जमकर हंगामा हुआ और सांसदों ने इसे देश की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ करार दिया।
नेपाल का दावा: लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा “हमारे अभिन्न हिस्से”
सीपीएन (माओवादी केंद्र) के मुख्य व्हिप हितराज पांडे ने संसद के आपातकालीन सत्र में कहा कि भारत और चीन ने नेपाल को विश्वास में लिए बिना यह समझौता किया, जो “हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता पर आघात” है।
उन्होंने सरकार से इस पर तत्काल राजनयिक पहल करने की मांग की।
नेपाली कांग्रेस के महासचिव गगन कुमार थापा ने भी कहा कि घरेलू मतभेद अलग हो सकते हैं, लेकिन “लिपुलेख के रास्ते भारत-चीन व्यापार समझौता अस्वीकार्य” है और सभी दलों को इस पर एकजुट रुख अपनाना होगा।
“नेपाल की अनुमति के बिना व्यापार गलत”
सांसद ठाकुर प्रसाद गैरे ने कहा कि कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा नेपाल की भूमि हैं। भारत-चीन को बिना नेपाल की सहमति इस मार्ग का उपयोग करने का अधिकार नहीं है।
सीपीएन-यूएमएल के नेता योगेश भट्टाराई और माओवादी सेंटर के सचिव देवेंद्र पौडेल ने भी “सीमा की रक्षा” के लिए सरकार से सख्त कूटनीतिक कदम उठाने की मांग की।
नेपाल सरकार की आधिकारिक स्थिति
नेपाल के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा—
“महाकाली नदी के पूर्व में स्थित लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा नेपाल के अविभाज्य अंग हैं। इन्हें आधिकारिक मानचित्र और संविधान में शामिल किया गया है।”
भारत की दो टूक: “नेपाल का दावा ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं”
भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने स्पष्ट किया कि:
लिपुलेख के ज़रिए भारत-चीन सीमा व्यापार 1954 से चल रहा है।
यह मार्ग दशकों तक सक्रिय रहा, केवल कोविड और अन्य परिस्थितियों में बाधित हुआ।
अब दोनों देशों ने इसे फिर से खोलने का निर्णय लिया है।
भारत-चीन समझौता: तीन दर्रों से होगा व्यापार
नई दिल्ली में चीनी विदेश मंत्री वांग यी, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर, एनएसए अजीत डोभाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई वार्ता के बाद तय हुआ कि सीमा व्यापार तीन बिंदुओं से शुरू होगा—
लिपुलेख दर्रा
शिपकीला दर्रा
नाथूला दर्रा
क्यों खास है भारत के लिए लिपुलेख दर्रा?
सामरिक महत्व: यह दर्रा भारत-चीन-नेपाल त्रिकोण पर स्थित है, जो रणनीतिक दृष्टि से अहम है।
धार्मिक महत्व: कैलाश मानसरोवर यात्रा का प्रमुख मार्ग यहीं से होकर जाता है।
आर्थिक महत्व: भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार का ऐतिहासिक रास्ता यही है।
👉 यह विवाद भारत-नेपाल संबंधों में नए तनाव का कारण बन सकता है, जबकि सामरिक रूप से भारत के लिए यह दर्रा बेहद अहम है।