“धर्म, राष्ट्र और समाज के प्रहरी थे ब्रम्हलीन द्विवपीठाधीश्वर शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज” जीवन यात्रा (1924–2022)

By – Ramanuj Tiwari
जबलपुर।ब्रम्हलीन द्विवपीठाधीश्वर शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज का जीवन भारतीय अध्यात्म, धर्मसंरक्षण और समाज जागरण की एक अद्वितीय गाथा है। वे द्वारका-शारदा पीठ (गुजरात) और ज्योतिष्पीठ (उत्तराखण्ड) – दोनों पीठों के शंकराचार्य रहे, जो परंपरा में बहुत दुर्लभ बात है। उनका जीवन संस्मरण भारतीय सनातन धर्म की रक्षा और राष्ट्रहित में सतत सक्रियता का प्रेरणास्रोत है।
प्रारंभिक जीवन
जन्म: 2 सितंबर 1924, मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी ग्राम में हुआ था।
मूल नाम: पोथीराम उपाध्याय था।
बचपन से ही अध्यात्म और साधना में गहरी रुचि थी। मात्र 9 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने घर छोड़कर संन्यास जीवन की ओर कदम बढ़ाए।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
ब्रम्हलीन द्विवपीठाधीश्वर शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज किशोरावस्था में ही स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए।उन्होंने महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में सक्रिय भाग लिया।ब्रिटिश शासन द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर जेल भी भेजा गया।
इस तरह वे केवल संत ही नहीं, बल्कि स्वतंत्रता सेनानी भी थे।
संन्यास और आध्यात्मिक साधना
ब्रम्हलीन द्विवपीठाधीश्वर शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने संन्यास परंपरा में दीक्षा लेकर अद्वैत वेदांत और शंकराचार्य परंपरा का गहन अध्ययन किया।
उन्हें ज्योतिष्पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी का सान्निध्य मिला।
परंपरा में दुर्लभ अवसर, जब एक ही संत को दो पीठों का नेतृत्व सौंपा गया
1981 में उन्हें ज्योतिष्पीठ और द्वारका-शारदा पीठ दोनों का शंकराचार्य पद प्राप्त हुआ।
ज्योतिष्पीठ (उत्तराखण्ड) और द्वारका-शारदा पीठ (गुजरात) – दोनों का शंकराचार्य पद प्राप्त।
धार्मिक एवं सामाजिक योगदान
सनातन धर्म की रक्षा उनके व्यक्तितव व कृतित्व में समुद्र की गहराइयों से भी अधिक परिलक्षित होती थी। वे रामजन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख धार्मिक मार्गदर्शक थे।उन्होंने गंगा, गौमाता और वेद-पुराण की परंपरा के संरक्षण के लिए अनेक आंदोलन चलाए।
समाज सुधार
अंधविश्वास, पाखंड और आडंबर के खिलाफ हमेशा आवाज़ उठाई।धर्म को समाजहित से जोड़ते हुए दलितों और वंचितों को भी वेदपाठ और मंदिर प्रवेश के पक्षधर रहे।
शास्त्रज्ञ एवं प्रवचनकर्ता
उन्होंने वेदांत, गीता, उपनिषद और शंकराचार्य की शिक्षाओं का व्यापक प्रचार-प्रसार किया।उनके प्रवचन सहज, सरल और जनमानस को प्रेरित करने वाले होते थे।
प्रमुख विशेषताएँ
राष्ट्रीय संत : धर्म और राजनीति दोनों ही क्षेत्रों में संतुलित मार्गदर्शन दिया।
निर्भीक वक्ता : शासन और समाज की गलत नीतियों की आलोचना करने से कभी पीछे नहीं हटे।
संघर्षशील जीवन : स्वतंत्रता संग्राम से लेकर राममंदिर आंदोलन तक, हर मोर्चे पर सक्रिय रहे।
महापरिनिर्वाण
11 सितंबर 2022 को मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर ज़िले के परमहंसी गंगा आश्रम (झोतेश्वर) में उनका महापरिनिर्वाण हुआ।उस समय उनकी आयु 99 वर्ष थी।
जीवन से प्रेरणा
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का जीवन हमें यह संदेश देता है कि—धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि राष्ट्र और समाज के लिए जिम्मेदारी है।
सत्य और न्याय की रक्षा के लिए संघर्ष करना ही सच्चा संन्यास है।
भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की जड़ों को मजबूत करना ही जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य हो।





