देशभक्त शहीद के पिता का सवाल, बड़े आदमी का बेटा फौज में क्यों नहीं जाता

जानिए देशभक्त शहीद के पिता से

शहीद मेजर अजय प्रसाद के पिता आर.एन. प्रसाद खुद सेना में साइकोलॉजिस्ट रहे हैं. खुद फौज में रहे एक जांबाज शहीद के पिता ने जो समाज के हिस्से छोड़े हैं वो सवाल सुनिए.सवाल कि आखिर किसी बड़े आदमी का बेटा फौज में क्यों नहीं जाता, सिर्फ फोटो खिंचाने के लिए रह गए हैं क्या शहीद के माता पिता. पंद्रह अगस्त के गीत गाना फौज नहीं है. वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो, फौजी तो अपनी ड्यूटी निभा रहे है आप क्या कर रहे हैं।

संकट गया तो फौजी को फिर कौन याद करता है
भोपाल के अरविंद विहार इलाके के अपने घर में दरवाजे पर ही लगी मेजर अजय प्रसाद की तस्वीर ये बता देती है कि बाकी दुनिया भले एक शहीद की शहादत को बिसरा दे. लेकिन इस घर का पता और पहचान बेटा अजय प्रसाद ही है. एक उम्र जितना लंबा अर्सा बीत गया उस दिन को जब इस घर पर पहाड़ की तरह टूटा था वो दर्द और संकट.
कारगिल ऑपरेशन के दौरान शहीद मेजर अजय प्रसाद शहीद हुए थे. लेकिन पच्चीस साल बाद भी घर का हर कोना उनकी ही तस्वीर से मुस्कुराता है. क्या बाकी दुनिया में इसी तरह देश के सपूत की याद होती है, इस सवाल पर आर.एन. प्रसाद कहते हैं. एक कहावत है “गॉड एण्ड सोल्जर रिमेम्बर्ड इन क्राइसिस. भगवान और फौजी को दुनिया संकट में ही याद करती है. वरना कौन याद करता है. लेकिन पंद्रह अगस्त पर गाना गा देना फौज नहीं है. जब फौजियों को परिवारों को सम्मान देने की बात आती है तो देखता हूं क्या होना चाहिए लेकिन क्या है.”
शहीद के पिता का सवाल, तो क्या हम सिर्फ फोटो खिंचाने के लिए हैं
खुद भी सेना में मनोचिकित्सक रहे हैं आर एन प्रसाद, लेकिन अपनी पहचान अब भी मेजर अजय प्रसाद के पिता के तौर पर ही चाहते हैं. हांलाकि, कारगिल की जंग और उस दौरान उनके परिवार और घर में आए तूफान से जिंदगी अब बहुत आगे निकल चुकी है. कहते हैं, पंद्रह अगस्त के साथ देश भक्ति का जो बुखार चढ़ता है. उसमें हमारी भी याद हो जाती है. पंद्रह अगस्त से पहले शुरू हो जाता है सम्मान का सिलसिला.
लोग आते हैं शहीद के माता पिता को माला डालकर फोटो खिंचाते हैं. फोटो मीडिया में आएगी अखबार में छपेगी. ये एक ही दिन का मामला होता है. हकीकत ये है कि सिविल पॉपुलेशन में फौजी का वो रिस्पेक्ट नहीं है. मैंने तो ये कहते भी सुना है कि फौज में गए तो पैसा मिला था ना. तभी ना गए. पंद्रह अगस्त को लोग आते हैं फोटो खिंचाते हैं. मीडिया में तस्वीर आ जाए. फोटो खिंच जाए. फिर कौन किसे पूछता है. इतने सिविलियन्स हैं अगर एक फौजी की जिममेदारी उठा लें तो क्या नहीं हो सकता.
इतने अवार्ड की अजय के नाम मिले अवार्ड से टेबल भर जाती
देशभक्ति कोई घुट्टी नहीं होती जो पिला दी जाए. बुखार की तरह चढ़ती उतरती भी नहीं. तराशे जाते हैं देशभक्त. आरएन प्रसाद ने अपने बेटे अजय को ऐसे ही तराशा था. वे कहते हैं “अगर एक दिन मेरे बच्चे स्कूल से लौटते हुए पत्थर उछालते घर ना आएं तो मुझे चिंता हो जाती थी कि आज क्या नाश्ता अच्छा नहीं बना. मैं और मेरी पत्नि फिर मेहनत करते. हमने अपने बच्चों को ऑल राउंडर बनाया. जब पुरस्कार मिलते थे स्कूल में तो पूरा टेबल अजय को मिली ट्राफियों से भर जाता था.

मैंने अपने बच्चों को अपने फैसले लेने की हमेशा पूरी आजादी दी. फौज में जाने का फैसला भी खुद अजय प्रसाद का ही था. आर. एन. प्रसाद कहते हैं, इसे चाहे जो कह लीजिए, घर का माहौल या फिर लगातार फौजियों के बीच में रहने की वजह से ये हुआ लेकिन अजय खुद ही फौज में जाना चाहते थे. हमने तो उनकी परवरिश में कोई कमी नहीं की, खाद पानी सब जो एक फूल के खिलने के लिए जरुरी होता है सब दिया. उसके नतीजे भी देखे. अजय एक्सट्रा ओर्डिनरी थे”.
ये मान सिर्फ एक देशभक्त शहीद के पिता को मिलता
“स्कूल से लेकर कॉलेज तक सिर्फ अव्वल आने वाला था मेरा बेटा. जब ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने कहा मुझे फौज में जाना है, तो मैंने कहा गो अहेड. कभी अफसोस होता है कि बेटे को फौज में क्यों भेज दिया, आखिर शहादत के लिए मेरा ही बेटा क्यों? इस सवाल पर , अजय प्रसाद एक मिनिट भी नहीं सोचते, जवाब में कहते हैं, ना कभी नहीं, एक वजह ये कि मैंने उनमें देशभक्ति के बीज जरूर डाले लेकिन सरहद पर जाने का, फौज ज्वाइन करने का फैसला उनका अपना था. दूसरा अगर वो वहां नहीं होते तो आज हमें आप लोग भी क्यों पूछते. वो नहीं है, फिर भी तो हमारी पहचान उन्हीं से है. ये मान सिर्फ एक देशभक्त शहीद के पिता को ही मिल सकता है”.

किसी बड़े आदमी का बेटा फौज में क्यों नहीं जाता
आर एन प्रसाद खरे लहजे में कहते हैं, “वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो फौजी तो बढ़ ही रहा है. सवाल है आप क्या कर रहे हैं . आराम. मुझे बताइए क्यों किसी बड़े आदमी का बेटा फौज में नहीं जाता. क्यों उन्हें अमरीका लंदन भेज दिया जाता है पढ़ने के लिए. कमाई करो लक्जरी की जिंदगी जीओ. फौज में मत जाना. ये सिविलियन्स के दो चेहरे हैं. क्यों नहीं जाना फौज में ये सवाल कौन करता है बताइए.”

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