आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण
बाल, रसगुल्ला,डायबीटीस दिवस

जहाँ सारा देश आज चाचा नेहरू की जयंती को बाल दिवस के रूप में मना रहा है। बंगाल के तमाम नगरों-कस्बों में नबीन चन्द्र दास की मूर्तियों पर मालाएं सजाई जा रही हैं।
पांच साल पहले ठीक आज के दिन भारत सरकार के वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय द्वारा रसगुल्ले को आधिकारिक रूप से बंगाल में जन्मा मान लिया गया था। 14 नवम्बर 2017 के दिन रसगुल्ले को रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट 1999 के तहत जी. आई. यानी भौगोलिक संकेतक टैग जारी किया गया था।
खुशी और गर्व के इस मौके को याद रखने की नीयत से पश्चिम बंगाल की सरकार ने इस दिन को विश्व रसगुल्ला दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया.
रसगुल्ले से बंगाल के लोग अपने से भी ज्यादा मोहब्बत करते हैं. उसकी शान में गुस्ताखी करने वाली किसी भी बात को सहन कर लेने वाला इंसान सब कुछ हो सकता है, बंगाली नहीं हो सकता। आज जब देश के हर कस्बे-नगर-गाँव में छोटे-बड़े हलवाई अपनी दुकानों में छेने से बनने वाली, रुई के फाहे सरीखी इस अतीव मुलायम, धवल मिठाई को सजाते हैं तो वे जाने-अनजाने कलकत्ते के बाघ बाजार इलाके में 1845 में जन्मे नबीन चन्द्र दास का स्मरण कर रहे होते हैं जिन्होंने 1866 में रसगुल्ले यानी रोशोगुल्ला की ईजाद की थी।
भारत के पहले वाइसराय लार्ड केनिंग की पत्नी शार्लोट अर्थात लेडी केनिंग के भारत-प्रवास के दौरान उनके सम्मान में एक और ख्यात हलवाई भीम चन्द्र नाग ने 1856 में छेने से बने गोलों को तल कर इसी रसगुल्ले का वह रूप तैयार किया जिसे उत्तर भारत में गुलाब जामुन के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है। बंगाल में इस मिठाई का नाम है लेडीकेनी। लेडीकेनी शब्द दरअसल इन्हीं लेडी केनिंग का अपभ्रंश है। कलकत्ते से बहुत प्रेम करने वाली इस स्त्री का निधन भी यहीं हुआ था।मज़े की बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ 1991 से आज के दिन को विश्व डायबिटीज डे के तौर पर मनाता आ रहा है। डाक्टर ने आपको मीठा खाने को मना किया हुआ है तो भी डायबिटीज के नाम पर एक रसगुल्ले की छूट तो आज ली ही जा सकती है।